रविवार, 13 जुलाई 2014

पटेल प्रतिमा बनाम पुस्तकालय

पटेल प्रतिमा  बनाम पुस्तकालय
-एस.आर. दारापुरी  

हाल में पेश किये गए बजट में सरकार ने सरदार पटेल की मूर्ती की स्थापना के लिए 200 करोड़ का प्रावधान किया है. इस सम्बन्ध में एक प्रशन यह पैदा होता है कि भाजपा ने चुनाव के दौरान पटेल की मूर्ती के बहाने पूरे देश से जो लोहा इकठ्ठा किया था उस का क्या हुआ ? इसी प्रकार भाजपा ने अयोध्या में राम मंदिर के नाम पर हरेक घर से एक राम शिला (ईंट) और अरबों रुपए का जो चंदा इकठ्ठा किया था उस का क्या हुआ? क्या सरकार को यह अधिकार है कि वह अपने इष्ट (सरदार पटेल) की मूर्ती की स्थापना के लिए जनता के धन की इतनी बेरहमी से बर्बादी करे जब कि वह धन जन समस्यायों को हल करने में लगाया जाना चाहिए. यदि भाजपा अपने इष्ट सरदार पटेल की मूर्ती लगाना ही चाहती है तो वह अपने पार्टी फण्ड से लगाये न कि जनता के पैसे से.
यहाँ पर यह भी बताना उचित होगा कि सरदार पटेल दलितों और डॉ. आंबेडकर के घोर विरोधी थे. संविधान निर्माण के समय उन्होंने पूना पैक्ट का तिरस्कार करते हुए दलितों को किसी भी प्रकार का आरक्षण देने से मन कर दिया था. इस पर संविधान सभा के सभी दलित सदस्य डॉ. आंबेडकर जो उस समय संविधान निर्मात्री सभा के अध्यक्ष बन चुके थे, के पास गए और पटेल के आरक्षण के बारे में फैसले की बात बताई. इस पर डॉ. आंबेडकर ने कहा कि आप सब लोग गाँधी जी के पास जाइये और उन्हें पूना पैक्ट की याद दिलाइये. डॉ. आंबेडकर की सलाह के अनुसार वे गाँधी जी के पास गए और सरदार पटेल द्वारा दलितों के आरक्षण को नकारने वाली बात बताई. इस पर गाँधी जी ने सरदार पटेल को पूना पैक्ट का सम्मान करने और दलितों को आरक्षण देने की बात कही. तब कहीं जाकर संविधान में दलितों के आरक्षण का प्राविधान हो सका. इसी प्रकार सरदार पटेल ने मुसलामानों और सिखों को आज़ादी के पूर्व मिल रहे आरक्षण को भी नकार दिया था था. बाद में बड़ी मुश्किल से दलित सिखों को काफी जद्दोजहद के बाद 1956 में आरक्षण मिला और दलित मुसलामानों को तो आज तक नहीं मिला.
सरदार पटेल डॉ. आंबेडकर के भी घोर विरोधी थे. उन्होंने जान बूझ कर डॉ. आंबेडकर को संविधान निर्माण हेतु सब से महत्त्व पूर्ण समिति "Fundamental Rights Committee" (मौलिक अधिकार समिति) में नहीं रखा था. डॉ. आंबेडकर और सरदार पटेल के बीच सम्बन्ध इतने कडवे थे कि एक बार गुस्से में डॉ. आंबेडकर ने संविधान निर्माण सम्बन्धी एक पत्रावली उठा कर यह कहते हुए फेंक दी थी कि "जाओ पटेल को कह दो कि मैं संविधान नहीं बनायूंगा जिस से बनवाना चाहे बनवा लें."
हमारा यह भी सुझाव है कि यदि भाजपा वास्तव में सरदार पटेल के नाम पर कुछ जनउपयोगी कार्य करना ही चाहती है तो वह इस 200 करोड़ रुपये से पूरे देश में सरदार पटेल के नाम पर अच्छे पुस्तकालय बनवा दे ताकि जनता उन से कुछ ज्ञान अर्जन कर सके. काश ! मायावती ने भी मूर्तियों पर हजारों करोड़ बर्बाद न करके उस पैसे से पुस्तकालय और विद्यालय बनवा दिए होते.
मूर्तियों के बारे में डॉ. आंबेडकर के विचार भी बहुत समीचीन हैं जैसा कि निम्नलिखित से स्पष्ट है:
1916 में जब डॉ आंबेडकर कोलंबिया विश्व विद्यालय में पढ़ रहे थे तो उस समय उन्होंने "Bombay Chronicle" समाचार पत्र में यह समाचार पढ़ा कि बॉम्बे की तत्कालीन सरकार दादा भाई नौरोजी और गोपाल कृष्ण गोखले जो कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे और एक वर्ष पूर्व उन का देहांत हो गया था का स्मारक बनाना चाहती है. इस सम्बन्ध में यह निर्णय लिया गया है कि दादा भाई नौरोजी की एक मूर्ती बॉम्बे नगरपालिका कार्यालय के प्रांगण में लगवा दी जाये और गोपाल कृष्ण गोखले जी की "सर्वेन्ट्स आफ इंडिया" संस्था की शाखाएं हरेक जिले में स्थापित कर दी जाएँ. इस पर डॉ. आंबेडकर ने अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए बाम्बे क्रानिकल के सम्पादक को जो पत्र लिखा उस में उन्होंने कहा कि "गोखले जी की संस्था की शाखाओं की हरेक जिले में स्थापना किया जाना तो उचित है परन्तु क्या दादा भाई नौरोजी की मूर्ती की जगह उन के नाम पर एक अच्छे पुस्तकालय की स्थापना नहीं की जा सकती ? हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे देश के लोगों ने समाज के विकास में पुस्तकालयों की भूमिका को नहीं समझा है."
क्या डॉ. आंबेडकर के मूर्तियों के सम्बन्ध में उक्त विचार आज भी प्रासंगिक नहीं हैं?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

उत्तर प्रदेश में दलित-आदिवासी और भूमि का प्रश्न

  उत्तर प्रदेश में दलित - आदिवासी और भूमि का प्रश्न -     एस आर दारापुरी, राष्ट्रीय प्रवक्ता, आल इंडिया पीपुल्स फ्रन्ट 2011 की जनगणना ...